(१)पातञ्जल योग दर्शन के अनुसार – योगश्चित्तवृतिनिरोधः अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है।
(२)सांख्य दर्शन के अनुसार – पुरुषप्रकृत्योर्वियोगेपि योगइत्यमिधीयते। अर्थात् पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवस्थित होना ही योग है।
(३)विष्णुपुराण के अनुसार – योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने अर्थात् जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है।
(४)भगवद्गीता के अनुसार – सिद्धासिद्धयो समोभूत्वा समत्वं योग उच्चते अर्थात् दुःख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योग है।
(५)भगवद्गीता के अनुसार – तस्माद्दयोगाययुज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् अर्थात् कर्त्तव्य कर्म बन्धक न हो, इसलिए निष्काम भावना से अनुप्रेरित होकर कर्त्तव्य करने का कौशल योग है।
(६)आचार्य हरिभद्र के अनुसार – मोक्खेण जोयणाओ सव्वो वि धम्म ववहारो जोगो मोक्ष से जोड़ने वाले सभी व्यवहार योग है।
(७) बौद्ध धर्म के अनुसार – कुशल चितैकग्गता योगः अर्थात् कुशल चित्त की एकाग्रता योग है।
योग क्या है? – What is Yoga ?
योग क्या है, यह जानने के लिए हमें इसके मूल में जाना होगा। योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘युज’ से हुई है, जिसका अर्थ जुड़ना है। योग के मूल रूप से दो अर्थ माने गए हैं, पहला- जुड़ना और दूसरा-समाधि। जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ पाते, तब तक समाधि के स्तर को प्राप्त करना मुश्किल होता है। यह सिर्फ व्यायाम भर नहीं है, बल्कि विज्ञान पर आधारित शारीरिक क्रिया है। इसमें मस्तिष्क, शरीर और आत्मा का एक-दूसरे से मिलन होता है। साथ ही मानव और प्रकृति के बीच एक सामंजस्य कायम होता है। यह जीवन को सही प्रकार से जीने का एक मार्ग है। गीता में भी श्रीकृष्ण ने कहा है कि योग: कर्मसु कौशलम यानी योग से कर्मों में कुशलता आती है।
योग के प्रकार – Types of Yoga
राज योग :योग की सबसे अंतिम अवस्था समाधि को ही राजयोग कहा गया है। इसे सभी योगों का राजा माना गया है, क्योंकि इसमें सभी प्रकार के योगों की कोई न कोई खासियत जरूर है। इसमें रोजमर्रा की जिंदगी से कुछ समय निकालकर आत्म-निरीक्षण किया जाता है। यह ऐसी साधना है, जिसे हर कोई कर सकता है। महर्षि पतंजलि ने इसका नाम अष्टांग योग रखा है और योग सूत्र में इसका विस्तार से उल्लेख किया है। उन्होंने इसके आठ प्रकार बताए हैं, जो इस प्रकार हैं :
यम (शपथ लेना)
नियम (आत्म अनुशासन)
आसन (मुद्रा)
प्राणायाम (श्वास नियंत्रण)
प्रत्याहार (इंद्रियों का नियंत्रण)
धारणा (एकाग्रता)
ध्यान (मेडिटेशन)
समाधि (बंधनों से मुक्ति या परमात्मा से मिलन)
ज्ञान योग :ज्ञान योग को बुद्धि का मार्ग माना गया है। यह ज्ञान और स्वयं से परिचय करने का जरिया है। इसके जरिए मन के अंधकार यानी अज्ञान को दूर किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि आत्मा की शुद्धि ज्ञान योग से ही होती है। चिंतन करते हुए शुद्ध स्वरूप को प्राप्त कर लेना ही ज्ञान योग कहलाता है। साथ ही योग के ग्रंथों का अध्ययन कर बुद्धि का विकास किया जाता है। ज्ञान योग को सबसे कठिन माना गया है। अंत में इतना ही कहा जा सकता है कि स्वयं में लुप्त अपार संभावनाओं की खोज कर ब्रह्म में लीन हो जाना है ज्ञान योग कहलाता है।
कर्म योग :कर्म योग को हम इस श्लोक के माध्यम से समझते हैं। श्रीकृष्ण ने भी गीता में कहा है ‘योग: कर्मसु कौशलम्’ यानी कुशलतापूर्वक काम करना ही योग है। कर्म योग का सिद्धांत है कि हम वर्तमान में जो कुछ भी अनुभव करते हैं, वो हमारे पूर्व कर्मों पर आधारित होता है। कर्म योग के जरिए मनुष्य किसी मोह-माया में फंसे बिना सांसारिक कार्य करता जाता है और अंत में परमेश्वर में लीन हो जाता है। गृहस्थ लोगों के लिए यह योग सबसे उपयुक्त माना गया है।
भक्ति योग :भक्ति का अर्थ दिव्य प्रेम और योग का अर्थ जुड़ना है। ईश्वर, सृष्टि, प्राणियों, पशु-पक्षियों आदि के प्रति प्रेम, समर्पण भाव और निष्ठा को ही भक्ति योग माना गया है। भक्ति योग किसी भी उम्र, धर्म, राष्ट्र, निर्धन व अमीर व्यक्ति कर सकता है। हर कोई किसी न किसी को अपना ईश्वर मानकर उसकी पूजा करता है, बस उसी पूजा को भक्ति योग कहा गया है। यह भक्ति निस्वार्थ भाव से की जाती है, ताकि हम अपने उद्देश्य को सुरक्षित हासिल कर सकें।
हठ योग :यह प्राचीन भारतीय साधना पद्धति है। हठ में ह का अर्थ हकार यानी दाई नासिका स्वर, जिसे पिंगला नाड़ी करते हैं। वहीं, ठ का अर्थ ठकार यानी बाईं नासिका स्वर, जिसे इड़ा नाड़ी कहते हैं, जबकि योग दोनों को जोड़ने का काम करता है। हठ योग के जरिए इन दोनों नाड़ियों के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनि हठ योग किया करते थे। इन दिनों हठ योग का प्रचलन काफी बढ़ गया है। इसे करने से आप शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकते हैं और मानसिक रूप से शांति मिलती है।
कुंडलिनी/लय योग :योग के अनुसार मानव शरीर में सात चक्र होते हैं। जब ध्यान के माध्यम से कुंडलिनी को जागृत किया जाता है, तो शक्ति जागृत होकर मस्तिष्क की ओर जाती है। इस दौरान वह सभी सातों चक्रों को क्रियाशील करती है। इस प्रक्रिया को ही कुंडलिनी/लय योग कहा जाता है। इसमें मनुष्य बाहर के बंधनों से मुक्त होकर भीतर पैदा होने वाले शब्दों को सुनने का प्रयास करता है, जिसे नाद कहा जाता है। इस प्रकार के अभ्यास से मन की चंचलता खत्म होती है और एकाग्रता बढ़ती है। रीना जैन
Reena Jain is a professional Advocate and Yoga Blogger. She has graduation in Music and Yoga. She earned professional degrees in LLB and LLM. She has authored 2 books in Yoga.
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